क्या है खस (खसखस) की ख़ास बात
खस या खसखस (Khus Khus) वातावरण में अपनी अद्वितीय महक, शीतलता और ताजगी बिखेरने तथा पर्यावरण को स्वच्छ बनाये रखने के गुणों के कारण प्राचीन काल से ही मानव मन को आकर्षित करता रहा है। खासकर गर्मी के दिनों की उमस और गर्म हवा के झोंकों के चलते तनाव और थकान पैदा करने वाले वातावरण से परेशान आदमी के तन-मन को खस की शीतलता, ताजगी और भीनी-भीनी अनूटी खुशबू से काफी राहत मिलती है। इसलिए भीषण गर्मी के चलते थकान और तनाव से ग्रस्त आदमी खस द्वारा प्रदत्त शीतल, स्वच्छ, खुशनुमा और सुवासित वातावरण के घेरे में आकर अपने आपको तनावमुक्त और तरोताज़ा महसूस करने लगता है। सौन्दर्य प्रसाधन सामग्रियों के निर्माण हेतु कच्चे माल के रूप में तथा गर्मियों में दरवाजे और खिड़कियों पर खस की चटाई के इस्तेमाल ने इसे बहुत ही महत्वपूर्ण बना दिया है। परिणामस्वरूप आज सारी दुनिया में अधिकाधिक लाभ अर्जित करने के उद्देश्य से खस का प्रयोग व्यावसायिक रूप से हो रहा है। कूलरों में भी खस की चटाई का प्रयोग काफी गुणकारी माना जाने लगा है। समशीतोष्ण देशों में खस की चटाइयां खुशबू बिखेरने में तो काम आती ही हैं खस के पौधे भू-क्षरण रोकने में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। इतना ही नहीं, खस औषधीय पौधों के रूप में भी अत्यन्त उपयोगी है।
कूलरों में भी खस की चटाई का प्रयोग काफी गुणकारी माना जाने लगा है। समशीतोष्ण देशों में खस की चटाइयां खुशबू बिखेरने में तो काम आती ही हैं खस के पौधे भू-क्षरण रोकने में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं।
खस क्या है?
यह पानी के किनारे मिलने वाली एक प्रकार की लम्बी-लम्बी जड़ें हैं। इसका वानस्पतिक नाम वेटिवेरिया ज़िज़ेनिऑयडीज़ है। वेटिवेर का अर्थ है ‘जड़ जो खोदा जाय’ और ज़िज़ेनिऑयडीज़ का अर्थ है ‘नदी के किनारे। यह ग्रेमिनी कुल का पौधा है और इसका तना कबूतर के पंख के समान होता है। इसकी पत्तियां सीधी, कठोर और एक से दो फुट (30 से 60 सेमी.) तक लम्बी होती हैं जो आरम्भ में पतली-पतली बहु-पत्तियों में विभाजित होती हैं। खस का तना 2-5 फुट (60 से 150 सेमी.) लम्बा या ऊंचा होता है। इसकी जड़ें लम्बी, घनी और रेशेदार होती हैं। इसकी जड़ों का रंग कुछ-कुछ भूरा होता है। ये जड़ स्पंज की तरह नरम होती हैं । इन्हीं जड़ों से सुगंध फूटती है। इसके भूरे या बैंगनी रंग के पुष्प काफी बड़े होते हैं। इसके पुष्पगुच्छ 6 से 12 इंच (15 से 30 सेमी.) लम्बे और नुकीले होते हैं जो वर्षा काल में लगते हैं और तब कुछ दिनों के बाद फल में परिवर्तित हो जाते हैं। नीचे के पुष्प उभयलिंगी होते हैं
इसे हिन्दी में खस, गांडर, वाले का घास, शंदर झाड़, गुलरार और कीरन; संस्कृत में उशीर (कान्तिवर्धक), नलद (गंध देने वाला), सेव्य (सेवन करने योग्य), अमृणाल (कमलनल के समान), समगंधक (प्रशस्त गंधयुक्त) और जलवास (जल प्राप्य स्थान में रहने वाला); मलयालम में वाला; गुजराती में वालो और कालोवालो; बंगला में खसखस और वेनाघास; तमिल में वेट्टिवेर; तेलुगु में वेट्टिवेल्लु; मराठी में खसखसा और कालावाला तथा कन्नड़ में लवंचा कहते हैं। खस को अरबी और फारसी में उसिर, आरत और कस तथा अंग्रेजी में खसखस ग्रास कहते हैं।
खस की विशेषताएं
1. उसर भूमि, बेकार परती भूमि, उबड़-खाबड़ भूमि, गड्ढे वाली भूमि, बलुई भूमि और क्षारीय मिट्टी वाली भूमि में खस को उगाया जा सकता है। जलमग्न भूमि, नदी के ऐसे किनारों की भूमि जो समय-समय पर बाढ़ के पानी से ढकी रहती है और दलदली भूमि में भी इसकी खेती की जा सकती है।
2. मध्यम और उच्च उर्वरा शक्ति वाली भूमि में तो बगैर खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल किये खस को उगाया जा सकता है।
3. चूंकि खस का पौधा कठोर प्रकृति का होता है । इसलिए इसे मामूली सी देखभाल और मिट्टी की तैयारी करके लगाया जा सकता है ।
4 खस तेज गति से बढ़ने वाला पौधा है। इसलिए यह खरपतवारों को उगने और फलने-फूलने का मौका नहीं देता है।
5. खस अपने आप फैलने वाली घास नहीं है। फिर भी यह अनावृष्टि, बाढ़ और आग से प्रभावित नहीं होती है। इसकी एक खास बात यह भी है कि जानवर इसे नहीं खाते हैं।
6. फसलों के साथ यह पानी और पोषक पदार्थों के लिए अन्य पौधों से स्पर्धा नहीं करता है।
7. खस के पौधों में मौजूद तेल की गंध कीड़ों-मकोड़ों के प्रति सहज प्रतिरोध दर्शाती है। इसलिए खस के तेल का इस्तेमाल हानिकारक कीड़े-मकोड़ों को भगाने के लिए किया जाता है। इसके तेल की गंध मक्खियों और मच्छरों को भी भगा सकती है। यही कारण है कि हमारे देश में लोग बहुत पहले से ही कपड़ों को कीड़ों से बचाने के लिए खस की सूखी जड़ों का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। खस की सूखी जड़ों को कपड़ों के साथ रखा जाता है तो कपड़ों में भीनी-भीनी मनमोहक खुशबू भी आने लगती है।
वैसे तो देखने सुनने में यह करीब करीब असंभव ही लगता है कि खस के एक पौधे की चौड़ाई भर की बाड़ मिट्टी के संचालन को मूसलाधार वर्षा से बचा सकती है। दरअसल खस का पौधा काफी चौड़ा होता है और जड़ के पास तनों का गुच्छा इतना सघन होता है कि इसकी चौड़ाई लगभग एक मीटर होती है। इसलिए किसी भी बलवान पुरुष को इसको उखाड़ने में बहुत अधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है। यही कारण है कि समशीतोष्ण देशों में भूमि संरक्षण के लिए यह एक श्रेष्ठ और उपयुक्त घास है।
खस के औषधीय गुण
यद्यपि खस का इस्तेमाल औषधि के रूप में कम ही किया जाता है, फिर भी यह बहुत ही उपयुक्त औषधीय पौधा है। इसलिए आयुर्वेदिक चिकित्सक कई रोगों के इलाज हेतु घरेलू औषधि के रूप में खस के इस्तेमाल की सलाह देते हैं। प्राचीन संस्कृत आयुर्वेद ग्रन्थों जैसे भावप्रकाश आदि में खस को शीतलता प्रदान करने वाला, प्यास को बुझाने बाला, मस्तिष्क के लिए परम हितकारी, पेट के रोग में लाभदायक, बुखार को शान्त करने वाला, शारीरिक दाह को मिटाने वाला और रक्त विकार को दूर करने वाला एक उत्तम सौन्दर्य प्रसाधन बताया गया है।
खस के पौधे का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा इसकी जड़े हैं। इनसे औषधियां, अर्क, इत्र इत्यादि बनाये जाते हैं। चूर्ण के रूप में इसकी मात्रा प्रतिदिन 2 से 6 ग्राम तक तथा अर्क के रूप में प्रतिदिन 5 से 20 बूंदों तक प्रयोग में लायी जाती है।
एक उत्तम सौन्दर्य प्रसाधनः
खस के तेल का इस्तेमाल सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण और तम्बाकू उद्योग में जमकर किया जाता है। जिस किसी इत्र में खस का तेल मिला दिया जाता है, उसकी खुशबू सुहावनी हो जाती है और उसमें टिकाऊपन आ जाता है। यही कारण है कि इत्र बनाने में खस के तेल का उपयोग स्थायीकर के रूप में किया जाता है। इसलिए खस से निर्मित इत्र उम्दा किस्म का होता है। इसलिए देशी-विदेशी इत्र उत्पादकों के बीच खस के तेल की भारी मांग है।
फिर खस का तेल अन्य तेलों की खुशबू को तेजी से अवशोषित कर लेता है। यही कारण है कि सिर में लगाने वाले उत्तम किस्म के शीतल और सुगन्धित तेल तैयार करने में खस का इस्तेमाल होता है। नहाने के साबुन में भी खस के अर्क का इस्तेमाल होता है।
खस एक उत्तम किस्म का रक्तशोधक है। इसलिए इसकी जड़ें डालकर रखे हुए पानी को पीने तथा पानी के साथ पीसकर खस की जड़ों का लेप तैयार करके त्वचा पर लगाने से त्वचा की स्वाभाविक चमक और कोमलता बहुत लम्बे समय तक बरकरार रहती है।
खस की जड़ों को पानी के साथ पीसकर बालों की जड़ों पर लगाने से बालों को पोषण मिलता है। फलस्वरूप बाल मजबूत बनते हैं।
तरोताजा और तनाव मुक्त रखे खस
खस की जड़ों में एक प्रकार की मीठी सुगंध वाला वाष्पशील तेल होता है जो अन्य वाष्पशील तेलों की तुलना में कम उड़नशील होता है। इसी वाष्पशील तेल की मौजूदगी के चलते खस की जड़ों में अद्वितीय खुशबू होती है जो सूखने पर और भी बढ़ जाती है। फिर खस की तासीर शीतल होती है और इसकी गंध पसीने की दुर्गन्ध का नाश करती है। यही कारण है कि खस की सूखी जड़ों को पानी में भिगोने पर उससे सुगंध निकलने लगती है। फलस्वरूप भिगोये गये खस की जड़ों की उपस्थिति मात्र से ही वातावरण शीतल और खुशबूदार हो जाता है। फिर इसकी महक से वातावरण शुद्ध और कीड़े-मकोड़े रहित हो जाता है। इसलिए अशुद्ध हवा और गर्मी से बचने के लिए खस की सूखी जड़ों की बनी चटाइयां खिड़की और दरवाजों पर लटकायी जाती हैं। गर्मियों में इन चटाइयों पर पानी छिड़कने से कमरे के अन्दर की हवा शुद्ध, शीतल और भीनी-भीनी अद्वितीय सुगन्ध से सुवासित हो जाती है जिससे शरीर और मस्तिष्क दोनों को गर्मी के प्रकोप से निजात मिल जाती है। इसलिए आदमी तनाव मुक्त और तरोताजा महसूस करने लगता है। गर्मियों में खस की सूखी जड़ों से बने पंखों पर पानी की हल्की फुहार देकर झलने से इतनी शीतल और खुशबूदार हवा मिलती है कि भारी गर्मी में भी आदमी तरोताजा और प्रसन्नचित् महसूस करने लगता है। गर्मियों में ठंडे पानी में खस के अर्क की दो-तीन बूंदे डालकर स्नान करने से आदमी दिनभर तनाव मुक्त और तरोताजा महसूस करता है। गर्मी के दिनों में खस का अर्क मिला नारियल तेल सिर पर लगाने से आदमी का मस्तिष्क गर्मी के प्रभाव से मुक्त महसूस करता है।
खस की जड़ से तैयार पानी अमृत तुल्य शीतल पेय :
खस शीतलता प्रदान करने तथा प्यास बुझाने में कारगर भूमिका निभाता है। इसीलिए यदि पीने के पानी में खस की सूखी जड़ें कुछ समय के लिए डालकर छोड़ भर दिया जाय तो पानी स्वाद से भरा अमृततुल्य सुगन्धित शीतल पेय बन जाता है। यही कारण है कि शर्बत को स्वादिष्ट और खुशबूदार बनाने तथा शीतलता प्रदान करने वाले साधन के रूप में उसमें खस के अर्क की कुछ बूंदें मिला भर देना पर्याप्त होता है।
सिर की गर्मी, चक्कर, सिर दर्द, वमन की प्रवृत्ति और दिल की घबराहट में खस :
मस्तिष्क के लिए खस परम हितकारी है, क्योंकि इसके सेवन से मस्तिष्क को कमजोर करने वाले विकार दूर हो जाते हैं। शीतल तासीर होने के कारण बस से निर्मित तेल और इत्र का प्रयोग गर्म प्रकृति वाले व्यक्ति के लिए बेहद गुणकारी होता है। साफ कपड़े में खस की जड़ों का चूरा और थोड़ा सा कपूर मिलाकर पोटली बनायें। उस पोटली को गुलाब जल से भिगोकर सूंघने से सिर की गर्मी, चक्कर, सिर दर्द, वमन या ओकाई की प्रवृत्ति और दिल की घबराहट दूर हो जाती है। ऐसा करने से मूर्च्छित व्यक्ति को भी लाभ पहुंचता है।
खास के पौधे का सबसे महत्वपूर्ण भाग इसकी जड़ें है। इनसे औषधियां, अर्क, इत्र इत्यादि बनाए जाते हैं। मस्तिष्क के लिए खस परम हितकारी है, क्योंकि इसके सेवन से मस्तिष्क को कमजोर करने वाले विकार दूर हो जाते हैं। शीतल तासीर होने के कारण खस से निर्मित तेल और इत्र का प्रयोग गर्म प्रकृति वाले व्यक्ति के लिए बेहद गुणकारी होता है।
बुखार को शान्त करे खस
विशेषकर प्यास और शारीरिक दाह वाले बुखार में खस का प्रयोग विशेष गुणकारी सिद्ध हुआ है, क्योंकि यह प्यास और शारीरिक दाह दोनों को शान्त करता है। खस की पत्तियों को पानी में उबालकर उसका भाप स्नान लेने पर लगातार रहने वाले बुखार में बहुत लाभ होता है तेज बुखार में ताप को कम करने के लिए खस की जड़ों को पानी के साथ पीसकर शरीर पर लेप करने से बहुत आराम मिलता है। खस, धनिया, नागरमोथा, लाल चन्दन और सोंठ का काढ़ा बनाकर उसमें मिश्री और शहद मिलाकर पीने से कई तरह के बुखार दूर हो जाते हैं।
उदर विकारों से भी मुक्ति:
आयुर्वेदिक चिकित्सकों ने उदर रोगों में खस के सेवन को लाभकारी बताया है, क्योंकि यह पेट के कई विकारों को दूर करता है। पेट की जलन और पेट फूलने पर खस के पानी का सेवन बहुत लाभकारी साबित हुआ है। इसके सेवन से पाचनशक्ति मजबूत होती है और इसलिए की शिकायत दूर हो जाती है। इसका सेवन वमन की प्रकृति का नाश करता है। अतिसार और हैजा के मरीजों को पानी में के अर्क की कुछ बूंदें मिलाकर पिलाने से बहुत लाभ होता है।
चर्म रोग में भी उपयोगी
खस एक प्रकार का उम्दा रक्तशोधक है। इसलिए इसके चूर्ण और अर्क के सेवन तथा शरीर पर इसकी जड़ों का लेप लगाने से रक्त विकार दूर हो जाते हैं जिससे चर्म रोगों से मुक्ति पाने में काफी मदद मिलती है तथा त्वचा में स्वाभाविक चमक और कोमलता आ जाती है। शीतल तासीर होने के कारण शरीर पर खस का लेप लगाने से शारीरिक दाह शान्त होती है। साफ-सुथरी सिल पर खस की जड़ों को पानी के साथ पीसकर उसका लेप तैयार किया जाता है।
प्राप्ति स्थान
भारत में खस की लगभग 25 प्रजातियां पायी जाती हैं। यह घास के रूप में हमारे देश में प्रायः सभी स्थानों पर उगता है, लेकिन इसकी मुख्य रूप से उगायी जाने वाली प्रजातियां हैं: के.एस.-1 के. एस.- 2, धारणी, केसरी, गुलाबी और सुगंधा । यह बहते हुए पानी के किनारों, तालाबों एवं नीची जमीन में स्वतः उग आती है। इसके पौधे समूह/ गुच्छों के रूप में उगते हैं। बंगाल की खाड़ी के किनारे की भूमि और उड़ीसा में यह बहुतायत में मिलता है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब और झारखण्ड के छोटानागपुर इलाके में भी खस उगाया जाता है। दक्षिण भारत में केरल और तमिलनाडु मुख्य खस उत्पादक राज्य हैं।
उल्लेखनीय है कि उत्तर भारत में पैदा किया गया खस दक्षिण भारत में पैदा किये गये खस की तुलना में बेहतर होता है। यही कारण है कि उत्तर भारतीय खस का तेल 7,500 से 10,000 रु. प्रति किलो की दर से बिकता है जबकि दक्षिण भारतीय खस का तेल 2500 से 4000 रुपये प्रति किलो की दर से।
संग्रहण एवं संरक्षण
खस लम्बे समय तक खराब न हो और इसका औषधीय मूल्य भी बना रहे, इसके लिए जरूरी है कि खस की जड़ों की खुदाई सावधानीपूर्वक की जाए, जिससे कि जड़ें बीच-बीच में कटें नहीं और न ही जड़ों की सतह पर खरोंच पड़ें। खोदकर जमीन से निकालने के बाद इसे साफ पानी से धोकर छाये में लटका दें जिससे कि अतिरिक्त पानी टपक-टपककर निकल जाए और तब साफ कपड़े पर फैलाकर छाया में ही सुखावें, क्योंकि लम्बे समय के लिए धूप में सुखाने पर इसके औषधीय मूल्य में कमी आ जाती है। जब खस की जड़ें सूख जाएं तो उन्हें ढक कर रखें। इस तरह से संग्रहित करने पर खस का औषधीय मूल्य तीन-चार वर्षों तक संरक्षित रहता है।
श्रोत:- विज्ञान प्रगति पत्रिका